*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 🔷आश्विन, शुक्ल पक्ष, शारदीय नवरात्रि विक्रम सम्वत 2082, 29 सितम्बर 2025
सोमवार नवरात्र सप्ताह🌙 *🙏
*🎈दिनांक -29 सितम्बर 2025*
*🎈 दिन - सोमवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - आश्विन*
*🎈 पक्ष - शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि- सप्तमी 16:31:07 दोपहर तक तत्पश्चात् अष्टमी*
*🎈 नक्षत्र - मूल 30:16:42 am तक तत्पश्चात् पूर्वाषाढा*
*🎈 योग - सौभाग्य 24:59:15* रात्रि तक तत्पश्चात् शोभन*
*🎈करण -वणिज 16:31:08 Pm तक तत्पश्चात् बव*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सुबह 07:57am से दोपहर 09:26am तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि - धनु *
*🎈सूर्य राशि- कन्या *
*🎈 सूर्योदय - 06:27:49*
*🎈 सूर्यास्त - 06:22:18* (सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🎈 ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:50 से प्रातः 05:39 तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 अभिजित मुहूर्त- 12:01 पी एम से 12:49 पी एम (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 12:01 ए एम, सितम्बर 30 से 12:49 ए एम, सितम्बर 30 तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अमृत काल -11:15 पी एम से 01:01 ए एम, सितम्बर 30*
*🎈 व्रत पर्व विवरण - सप्तमी -
नवरात्र का व्रत*
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 चर - सामान्य-06:28 ए एम से 07:57 ए एम*
*🎈 लाभ - उन्नति-07:57 ए एम से 09:27 ए एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-09:27 ए एम से 10:56 ए एम वार वेला*
*🎈काल - हानि-10:56 ए एम से 12:26 पी एम काल वेला*
*🎈शुभ - उत्तम-12:26 पी एम से 01:56 पी एम*
*🎈रोग - अमंगल-01:56 पी एम से 03:25 पी एम*
*🎈उद्वेग - अशुभ-03:25 पी एम से 04:55 पी एम*
*🎈 चर - सामान्य-04:55 पी एम से 06:25 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈रोग - अमंगल-06:25 पी एम से 07:55 पी एम*
*🎈काल - हानि-07:55 पी एम से 09:26 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-09:26 पी एम से 10:56 पी एम काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-10:56 पी एम से 12:26 ए एम, सितम्बर 30*
*🎈शुभ - उत्तम-12:26 ए एम से 01:57 ए एम, सितम्बर 30*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-01:57 ए एम से 03:27 ए एम, सितम्बर 30*
*🎈चर - सामान्य-03:27 ए एम से 04:58 ए एम, सितम्बर 30*
*🎈रोग - अमंगल-04:58 ए एम से 06:28 ए एम, सितम्बर 30*
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🚩 *☀#जय अम्बे ☀*
*☀#शारदीय नवरात्र पर्व☀*
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🌷🌷 आश्विन नवरात्रि सप्तम दिवस 🌷🌷
29 सितम्बर सोमवार 2025
🌷🍀🌷काल रात्रि पूजा 🌷
🍑* कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति...🍑
नवरात्र की सातवीं शक्ति का नाम है कालरात्रि। मां कालरात्रि यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी हैं। भगवान शंकर ने एक बार देवी को काली कह दिया, कहा जाता है, तभी से इनका एक नाम काली भी पड़ गया। दानव, भूत, प्रेत, पिशाच आदि इनके नाम लेने मात्र से भाग जाते हैं। यह सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम शुभकारी भी है।
🌹ये है मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कहानी🌹
कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में कोहराम मचा रखा था। इसी बात से चिंतित सभी देवतागण भगवान शिव जी के पास गए और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा।
भगवान शिव की बात मानकर माता पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
असुरी शक्तियां दूर भागती है इनके पूजन से...
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🌷मां कालरात्रि पूजा विधि... एवं भोग प्रसाद 🌷
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है।
मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
मां को रोली कुमकुम लगाएं।
मां को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।
मां कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
मां कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें।
मां की आरती भी करें।
मां को गुड़ का भोग: कहा जाता है कि मां गुड़ का भोग लगाने से प्रसन्न हो जाती हैं। इसलिए सप्तमी को मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना चाहिए। भोग लगाने के बाद गुड़ का आधा हिस्सा परिवार में बांटना चाहिए और बाकि ब्राह्मण को देना चाहिए।
कालरात्रि को शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि वह अपने भक्तों को सकारात्मक परिणाम देती हैं. नवरात्रि की सप्तमी को मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां कालरात्रि की पूजा सुबह और रात के समय में भी की जाती है. मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीज़ें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है. पूजा के समय माता को 108 गुलदाउदी फूलों से बनी माला अर्पित की जाती है.
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🌷🌷कालरात्रि ध्यान 🌷🌷
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करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालीं का दिव्यां विद्युत्मालाविभूषिताम्॥
अर्थ:
देवी कालरात्रि का मुख कराल (भीषण) है, उनका रूप अत्यंत घोर है।
वे मुक्तकेशी (खुले हुए केशों वाली) और चतुर्भुजा हैं।
वे कराली स्वरूपिणी हैं और विद्युत-ज्योति समान आभा की माला से भूषित हैं।
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दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोर्ध्वाङ्घ्रिपाणिकाम्॥
अर्थ:
उनके बाएँ ऊर्ध्व उठे हुए हाथों में लौहवज्र और खड्ग सुशोभित है।
दाहिने ऊर्ध्व हाथ में अभय-मुद्रा है और दूसरा दाहिना हाथ वर-मुद्रा में है।
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महामेघप्रभां श्यामां तथा चैव गर्दभारूढाम्।
घोरदंष्ट्रां करालास्यां पीनोन्नतपयोधराम्॥
अर्थ:
वे मेघों के समान गहन श्यामवर्णा हैं और गर्दभ (गधे) पर आरूढ़ हैं।
उनकी दाढ़ें घोर और भयावह हैं, मुख कराल है और वक्षस्थल अत्यन्त उन्नत एवं सुडौल है।
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सुखप्रसन्नवदनां स्मेराननसरोरुहाम्।
एवं संचिन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकामसमृद्धिदाम्॥
अर्थ:
परंतु साथ ही उनका मुख कमल के समान सुखद, प्रसन्न और स्मितयुक्त है।
इस प्रकार जो साधक देवी कालरात्रि का ध्यान करता है, वह अपने सभी कार्यों और कामनाओं की सिद्धि तथा समृद्धि प्राप्त करता है।
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🌷🌷 कालरात्रि स्तोत्रम् 🌷🌷
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हीं कालरात्रि श्रीं कराली चक्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीं शकृपान्विता॥
अर्थ:
"हीं" बीज से युक्त देवी कालरात्रि — कराली, कल्याणी और कलावती हैं।
वे काल की माता हैं, कलियुग के अहंकार का नाश करती हैं, काम बीज से प्रकट होकर करुणा से पूर्ण हैं।
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कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनार्तिनशिनी कुलकामिनी॥
अर्थ:
देवी कामबीज (क्लीं) का जप कराती हैं और स्वयं भी उसी बीज की स्वरूपा हैं।
वे दुष्ट विचारों का नाश करती हैं, सत्पुरुषों के दुःख दूर करती हैं और कुलों का कल्याण करने वाली कामिनी स्वरूपा हैं।
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क्लीं हीं श्रीं मन्त्रवर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
अर्थ:
"क्लीं-हीं-श्रीं" मंत्राक्षरों से युक्त देवी, कालरूप काँटों का संहार करने वाली हैं।
वे अनन्त कृपा की मूर्ति हैं, करुणा की धारा हैं, कृपा का पार नहीं है और कृपा ही उनका स्वरूप है।
🌷🌷 कालरात्रि मंत्र🌷🌷
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलता-कण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
अर्थ:
देवी कालरात्रि का स्वरूप —
वे एक जटा-बद्ध वेणी धारण करती हैं, कानों में जपाकुसुम (लाल फूल) धारण किए हैं।
नग्न शरीर, गधे पर आरूढ़ हैं।
उनके होंठ लंबे हैं, कानों पर विचित्र कर्णाभूषण है।
तैल से अभ्यक्त शरीर है।
बाएँ पैर से झूलती हुई लोहे की लता और काँटे का आभूषण धारण करती हैं।
शीर्ष पर ध्वजा सुशोभित है, कृष्णवर्णा हैं और अत्यन्त भयानकरी कालरात्रि सब भय का नाश करती हैं।
-(यह स्तोत्र एवं मंत्र सिद्धि, शत्रु-विनाश, दुष्ट-विघ्न-निवारण और तांत्रिक बाधा को काटने में अत्यंत प्रभावशाली है।)
🌷🌷मां कालरात्रि के सिद्ध मंत्र-🌷🌷
१..ॐ कालरात्र्यै च विदमहे सर्वभयनाशिन्यै धीमहि तन्नो
देवी प्रचोदयात।
2..ॐ कालरात्र्यै च विदमहे कालकाल्यै धीमहि तन्नो
देवी: प्रचोदयात्।
३..ॐ उल्कामुख्यै च विदमहे कल्पान्त काल्यै धीमहि तन्नो
कालरात्रि: प्रचोदयात्।
४..ॐ क्रीं हूं ह्रीं कालरात्र्यै खड्ग मुन्डधारिण्यै नमः।
५..ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’
६...ॐ क्रीं कालरात्र्यै क्रीं नमः।
७..ॐ क्रीं क्रीं क्रीं महाकाल्यै प्रसीद प्रसीद क्रीं क्रीं क्रीं फट्
स्वाहा।
८.. ॐ क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालकाल्यै क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
नमः/स्वाहा ।
ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम।
त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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